सुप्रीम कोर्ट में अब 7 अक्टूबर को होगा Online Gaming Act की सुनवाई: क्यों 7 Oct एक ऐतिहासिक Day है
Promotion and Regulation of Online Gaming Act, 2025 की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अब 7 अक्टूबर को होगा। आईए जानते हैं इस ब्लॉग में 7 अक्टूबर क्यों बन सकता है एक ऐतिहासिक मोड। भारत का ऑनलाइन गेमिंग सेक्टर एक बहुत ही निर्णायक मोड पर खड़ा है। इससे पहले मैं आपको बता चुका हूं कि – यह कानून 1 अक्टूबर 2025 से लागू होने वाला है, जिसके तहत सभी रियल मनी ऑनलाइन गेमिंग एप्स पूरी तरह से बंद हो जाएंगे। चाहे वह स्किल बेस्ड ही क्यों ना हो, सिर्फ और सिर्फ ए स्पोर्ट्स (e-sports) को ही इस दायरे से बाहर रखा गया है।
यह फैसला इतना बड़ा होगा कि इस तारीख पर 7 अक्टूबर पर सभी कानूनी विशेषज्ञ से लेकर के गेमिंग इंडस्ट्री के ओनर्स और करोड़ों प्लेयर्स, जो इस प्लेटफॉर्म्स पर खेलते थे, वह इस फैसले के आने का इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि यह सिर्फ फैसला नहीं होगा बल्कि यह आने वाले भविष्य में डिजिटल एंटरटेनमेंट स्टार्टअप्स को नया रूप दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट on Online Gaming Act:
सवाल यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस कानून के हक में फैसले देता है तो किन-किन चीजों को प्रतिबंधित किया जाएगा। तो सीधे-सीधे समझे कि भारत को छोड़कर सभी तरह के ऑनलाइन गेम्स, जिसमें आप पैसे डालकर खेलेंगे यानी पेड ऑनलाइन गेम्स, को अपराध माना गया है। इसमें न केवल एप्लीकेशंस के मालिक बल्कि प्रमोशन करने वालों पर भी रोक है। बल्कि विज्ञापन यानी एडवरटाइजमेंट, जो पेमेंट सिस्टम इन एप्स पर लगा हुआ है वह और यहां तक कि सोशल मीडिया पर किए गए किसी के भी द्वारा इसका प्रचार भी प्रतिबंधित है।
और सजा भी बेहद सख्त है। एप्स चलाने वालों के लिए 3 साल की सजा है, मेरा मतलब 3 साल तक जेल की और एक करोड़ तक का जुर्माना है। जबकि विज्ञापन दाताओं यानी जो प्रमोशन करेंगे, जो इनफ्लुएंसर होंगे, उनके लिए भी कठोर सजा तय किए गए हैं।
आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव on Online Gaming Act:
आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार सरकार का यह तर्क है कि यह कानून एडिक्शन यानी लत, फाइनेंशियल इश्यूज यानी वित्तीय संकट और भ्रामक प्रथाओं को रोकने के लिए बहुत जरूरी है। खास तौर पर भारतीय युवाओं और कमजोर वर्गों में इन चीजों पर कंट्रोल किया जा सकता है। अनुमान यह है कि इन एप्स को जो उसे करते थे वह हर साल करीब 20000 करोड़ का सामूहिक नुकसान उठाते थे। केंद्र का मानना है कि यह रोक उन परिवारों की रक्षा करेगा और अनियंत्रित गेमिंग के सामाजिक प्रभाव को रोकेगा और उसके रोकथाम का एक बहुत बड़ा साधन बनेगा।
कानून को चुनौती कौन दे रहा है ?
अगर आपको नहीं पता तो आप यह भी जानते चले कि इस कानून को चुनौती कौन दे रहा है। तो बड़े गेमिंग कंपनियों का एक फेडरेशन है, जिस फेडरेशन का नाम FIFS है। उसी में जुड़े कुछ कंपनी के द्वारा इसको चुनौती दी जा रही है। वैसे सीधे तौर पर हेड डिजिटल वर्क्स A23, क्लब बम और बघीरा चारों ने इस कानून को चुनौती दी है।
उनके तर्क संवैधानिक अधिकारों और पुराने Court के फैसलों पर पूरी तरह आधारित है। जैसे उनका तर्क है
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन, यानी उनका कहना है कि यह कानून बिजनेस की फ्रीडम यानी व्यापार की स्वतंत्रता, जो अनुच्छेद 19 (1)(g) में आता है,
- कानून के समक्ष समानता, जो अनुच्छेद 14 में है, और
- आजीविका व गरिमा के अधिकार, जो अनुच्छेद 21 में है, का उल्लंघन करता है।
दूसरा, स्किल बेस्ड गेम और चांस बेस्ड गेम में डिफरेंटशिएट करना। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी इस पर कई बार सुनवाई की है और उन्होंने फैसला भी दिया है कि रमी, पोकर और कैरम या फिर फैंटेसी गेम्स जैसे खेल स्किल बेस्ड माने जाएंगे। ऐसे में उनका सीधा बैन कर दिया जाना मनमाना जैसा है और असमर्थित है।
तीसरा जो तर्क है, वह है अनुपातहीन प्रतिक्रिया का। जिन्होंने चुनौती दी है यानी याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह पूरी तरह से जो बंद करने का प्रावधान लाया गया है, वह कहीं न कहीं कुछ रिस्ट्रिक्शन लगा करके भी किया जा सकता था। जैसे एज रिस्ट्रिक्शन (आयु सीमा), एक्सपेंडिचर लिमिटेशन यानी खर्च की सीमा और मजबूत कानूनी ढांचे बनाकर इसको रोका जा सकता था, कंट्रोल किया जा सकता था।
सुप्रीम कोर्ट के सामने कानूनी और संवैधानिक प्रश्न ?
अब सुप्रीम कोर्ट के सामने कानूनी और संवैधानिक प्रश्न कौन-कौन से हैं। जब जस्टिस जे.बी. पार्डीवाला और के.वी. विश्वनाथन की बेंच सुनवाई शुरू करेगी तो कुछ बहुत ही आसान और बुनियादी सवाल हैं, जिन पर स्वाभाविक ही विचार होगा।
विधि अधिकार यानी कि क्या सिर्फ संसद के अंदर पास किए गए ऑनलाइन गेमिंग बिल पर कानून बनाने का अधिकार है, जो पूरी तरह से परंपरागत रूप से अगर देखें तो राज्यों का सब्जेक्ट रहा है। दूसरा, स्किल वर्सेस चांस: क्या स्किल बेस्ड गेम्स को सट्टे और जुए के साथ मिलकर पूरी तरह बैन कर देना उचित है या गैर-संवैधानिक है। तीसरा, इतना कठोर सजा देने का मतलब यह है कि इस कानून के तहत तय किए गए जो दंड हैं, अनुच्छेद 21 के उचित प्रक्रिया और पर्सनल फ्रीडम यानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से मेल खाते हैं क्या। क्या यह इतने अधिक हैं—तीन-तीन साल का जेल और एक करोड़ का जुर्माना।
चौथा, स्टार्टअप या बिजनेस या व्यवसाय करने का अधिकार। क्या यह कानून कई वर्षों से काम कर रही कंपनियों और स्टार्टअप्स और वैलिड बिज़नेस को इनवैलिड तरीके से रोक नहीं लगाता है। भले ही इन कंपनी ने फ्री टू प्ले या ई-स्पोर्ट्स मॉडल की ओर शिफ्ट करने का मूड बना लिया हो, लेकिन इन फैसलों से बहुत कुछ बिगड़ भी है। एम्प्लॉइज को हटाना, काम करना ट्रांसफर करना, बहुत से लोग बेरोजगार हो जाना—ऐसी बहुत सारी समस्याएं हैं, जो कोर्ट में डिस्कस की जाएगी।
आगे क्या होगा और सबकी नज़रें 7 अक्टूबर पर जो है उसमें क्या-क्या हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की 7 अक्टूबर की सुनवाई मात्र कानूनी सुनवाई नहीं होगी। यह भारत की परंपरा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और डिजिटल भविष्य की रूपरेखा को डिसाइड करेगा। चाहे यह कानून जस का तस रहे, थोड़े बहुत इसमें संशोधन किया जाए या इसे पूरी तरह से बंद कर दिया जाए, इसका असर न केवल ऑनलाइन गेमिंग बिल पर बल्कि स्वतंत्रता और आम जनता के जीवन हित पर भी देखने को मिलेगा।
देश न केवल, बल्कि दुनिया की निगाहें इस ऐतिहासिक फैसले पर होंगी। बल्कि भारत के हर घर, जहां से लोग इन एप्स पर खेला करते थे, उनकी नजर भी यहां टिकी हुई है। मैं आपको सारे अपडेट्स देता रहूंगा, बस आप हमारे साथ जुड़े रहें।
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